ग्वालियर में बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर प्रतिमा विवाद: दलित अस्मिता, संविधान और जातिवादी मानसिकता के बीच संघर्ष

बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर सिर्फ एक व्यक्ति नहीं थे—वह दलित समाज के अधिकारों और संवैधानिक न्याय के प्रतीक थे। उनकी मूर्ति स्थापित करना केवल पत्थर नहीं, बल्कि सामाजिक सम्मान का इशारा है। जब ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में ऐसी प्रतिमा लगाने को लेकर बाधाएँ आईं, तो यह सिर्फ एक कानूनी विवाद नही…

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ग्वालियर में बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर प्रतिमा विवाद: दलित अस्मिता, संविधान और जातिवादी मानसिकता के बीच संघर्ष

बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर सिर्फ एक व्यक्ति नहीं थे—वह दलित समाज के अधिकारों और संवैधानिक न्याय के प्रतीक थे। उनकी मूर्ति स्थापित करना केवल पत्थर नहीं, बल्कि सामाजिक सम्मान का इशारा है। जब ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में ऐसी प्रतिमा लगाने को लेकर बाध…

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जब तक समाज में बराबरी नहीं होगी, तब तक साहित्य भी एकतरफा रहेगा

"जब तक समाज में बराबरी नहीं होगी, तब तक साहित्य भी एकतरफा रहेगा।" — ओमप्रकाश वाल्मीकि भारतीय समाज की सबसे बड़ी विडंबना यही रही है कि जिस जाति ने सबसे अधिक पीड़ा झेली, उसी की आवाज़ सबसे अधिक दबाई गई — साहित्य में भी, समाज में भी। दलित साहि…

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जातिवाद और पर्यावरणीय संकट : एक संरचनात्मक अन्याय की कहानी

भारत में जाति व्यवस्था कोई केवल सामाजिक ढांचा नहीं, बल्कि एक ऐसा अदृश्य जाल है जो जीवन के हर पहलू को छूता है — शिक्षा, रोज़गार, सम्मान, और... पर्यावरण तक को। यह बात सुनने में थोड़ी अटपटी लग सकती है, लेकिन हकीकत ये है कि भारत में पर्यावरणीय संकट और स…

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दिल्ली में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई: न्याय के नाम पर अन्याय?

देश की राजधानी दिल्ली—जहाँ संसद की भव्य इमारतें हैं, जहाँ से संविधान की बात होती है, और जहाँ से हर नागरिक के लिए न्याय का वादा किया जाता है—वहीं आज उसी दिल्ली की गलियों में इंसानियत को कुचला जा रहा है। झुग्गियों और इन अवैध के नाम पर तोड़े जाने वाले …

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हमें ‘बुद्ध’ बनना चाहिए या ‘बौद्ध’ ?

हमारे समाज में कई बार दो शब्द ‘बुद्ध’ और ‘बौद्ध’ सुनने को मिलते हैं। यह प्रश्न कि हमें ‘बुद्ध’ बनना चाहिए या ‘बौद्ध’, न केवल शब्दों का फर्क जानने का है, बल्कि यह हमारे जीवन के नजरिये, पहचान और आध्यात्मिकता से जुड़ा हुआ एक महत्वपूर्ण सवाल भी है। क्य…

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कॉलेजियम प्रणाली: न्यायिक स्वतंत्रता बनाम पारदर्शिता की चुनौती

भारतीय लोकतंत्र की मजबूती के लिए न्यायपालिका की स्वतंत्रता एक अनिवार्य आधारशिला है। यह केवल एक संवैधानिक प्रावधान नहीं, बल्कि नागरिक अधिकारों की सुरक्षा और सत्ता के दुरुपयोग की रोकथाम का मजबूत प्रहरी है। यही कारण है कि न्यायपालिका को अन्य संवैधानिक …

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क्या हनुमान जी पहले अंतरिक्ष यात्री थे? क्या है सच?

रामायण के चरित्र हनुमान जी भारतीय संस्कृति में शक्ति, भक्ति और साहस के प्रतीक हैं। उनके उड़कर लंका जाने, सूर्य को निगलने और हिमालय उठाने जैसे वर्णन बचपन से ही लोगों की स्मृति में हैं। लेकिन हाल के वर्षों में कुछ राष्ट्रवादी विचारकों और सोशल मीडिय…

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महात्मा ज्योतिबा फुले: बहुजन समाज सुधारक और क्रांतिकारी चिंतक

महात्मा ज्योतिबा फुले का नाम भारतीय समाज सुधार और दलित आंदोलन के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा गया है। वे न केवल एक समाज सुधारक थे, बल्कि एक द्रष्टा, विचारक, शिक्षक और क्रांतिकारी भी थे, जिन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद, अंधविश्वास और स…

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क्या राजा भोज ने हवाई जहाज या कोई विमान बनाया और उड़ाया था?

एक ऐतिहासिक मिथक का पर्दाफाश भारत का प्राचीन इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है। यहां गणित, ज्योतिष, चिकित्सा, और दर्शन जैसी कई विधाओं में अद्भुत योगदान देखने को मिलता है। परंतु जब विज्ञान की कसौटी पर कुछ ऐतिहासिक दावे परखे जाते हैं, तो कई बार सत्य और क…

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